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२०५ णरणन्दणि-जनौने आनंद आपनार. दूसिय पांचो. पत्ता २२ मात्रानी छे. . २०७ भाणुकुमरु वांचो. भानुकुमार सत्यभामानो पुत्र.
२०९-२१२. सुभानु, यदु, सुन्दर, सात्यकि, जयंत, पुरन्दर, कृपवर्मा, सार, सारण, दुंदुभि, वृकोदर, धर, धारण, देवसेन, शिबि, तेनो पुत्र, अपराजित, चिह्न, उद्धव, कांचन, नंद, रुद्र-ए यादवोनी नामावली आपी छे.
. २०९. मूळमां सारणु छे; ज्यारे छायामां सुंदर छे. एठले छाया सुधारवी.
२१४-२१६ कृष्णनी राणीभोनां नाम, रोहिणी एकलीने वार करतां. २१६ संबलि-श्यामला वांचो.
२१९-२२० प्रथम पंक्तिमा २३ मात्रा छे; ज्यारे बोजी पंक्ति गय असेस सुरय-राग रूव-विभमस्स एम वांचवं. अर्थः-तपश्चरणथी महाव्रतयुक स्त्रीजनोनां रूप अने विभ्रमनी सुरतपरनी सघळी आसति जती रही.
२२३ विरतं, सम्मत्तंनी साथे लेवं. विरत्तंमा छेवटनो तं अन्त्यप्रासमेळ माटे होय एम धारी विरक्ताः छायामां लखेलुं छे.
२२६. साणत्थावियाई 'साण-शाण कसोटीनो पत्थर ' ए अर्थ छायामां लीधो छे. परन्तु संशा-साण अपभ्रंशनी छेवटनी कक्षामां थाय छे. अथवा सारामां सारो मार्ग तो सवणत्थावियाई-श्रवणस्थापितानि ए प्रमाणे सुधारो- करीने अर्थ करवो ए छे.
२२७ उण्णय-इत्ता-उन्नतचित्ताः के उन्नतवृत्ताः एम संस्कृत छाया थई शके.
२३२ कंज केश; केशर्नु उत्पाटन करे छे.. । २३३-२३४. घत्तामा २४ मात्रा छे. " २४५ दसवावालंकिउ अस्पष्ट अर्थ छे. २५२ उवलद्ध-ग्रहण करेलो छे, दाबी दीधो छे. २५३ खगिंदगमणु गरुडवाहन विष्णुं. .. २५४ सइ-स्वयं सदा, छायामां सदा छे; स्वयं वधारे ठीक छे.
२५६ एक्क+अंगणइं त्यां (कौशांबीवनमा) कृष्णने एकल जर्नु पढशे; ज्यां पोतानी अंगनाओनो मेलाप कोइ पण रीते थई शकशे नहि. भाम अर्थ