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फा. घदि १३. ॥ लखेलुं छे; एटले सं. १५८२मां भा हाथपोथी लखेली छे एम मालम पडे छे.
आ उद्घाण हरिवंशपुराणनो संधि २८ छ; अने ते हाथपोथीनां पत्र ११४ -१२० (अ) मांथी अहि ऊतारवामां आवेलुं छे आ उद्धरणने एक ज हाथपोथीनो आधार छे. आ उद्वरणमां पांडवाना विराटनगरमा अज्ञातवास अने ते अरसामां द्रौपदी प्रत्ये दुष्ट मोहथी नीपजतो कीचकनो वध - ए बे बाबतोर्नु वर्णन करवामां आव्युं छे. आ उद्धरणनी वार्ता जिनसेनना हरिवंशपुराण करतां महाभारतना विराटपर्व साथे वधारे साम्य धरावे छे; जो के कोइक स्थळे वार्ताने जैन मान्यताओने अनुकूळ झोक आपवामां आव्यो छे.
२. उद्धरणवस्तुः--
द्रौपदीसहित पांडवो विराटराजना नगर तरफ गया; एवामां युधिष्ठिर पोताना चार भाई भने द्रौपदीने उद्देशी बोल्या, “ बार वर्ष आपणे दुःखमा गाळ्यां; हवे जेम भ्रमर कमलसरोवरमां छूपाई रहे तेम आपणे एक वर्ष विरा. टना घरमां छूपाइने गाळवानुं छे. त्यां सेवा स्वीकारवानी छ; अने ए तो जाणीतुं छे के योगोओने पण अगम्य एवो सेवाधर्म तमारे आचरवानो छे (१) माटे तमे जे जे सेवा करी शको ते मने जणावो. हुं तो कंक नाम धारण करी पृतना जाणकार अने सभामा बेसनार एवा राजाना पुरोहित तरीके रहीश." वृकोदर बोल्यो, “हुं बल्लव नाम धारण करी राजानो रसोईओ थईश." अर्जुन बोल्यो, “ हुं नृत्याचार्य बनी नरपतिनी कन्याओने नाच शीखवीश. (२) माझं नाम बृहन्नला राखीश; अने मारी कळामा मने कोइ पहोंची वळे तेवू नथी." नकुल कहे, “हुँ अश्वपति थईश." सहदेव कहे, "हुँ गायोनो पालक थईश.” (३) द्रौपदी कहे, “ हुं सैरंध्री थई मत्स्यराजनी राणोनी दासी थईश." आ प्रमाणे नक्की करी विराटनगरनी भागोळे ते बर्धा आवी पहोंच्या त्यां श्मशान हतुं अने एक भयंकर समडीनुं वृक्ष हतु. त्या नकुले हथीयार मूक्यां; अने बधां नगरमा पेठां. (४) जे प्रमाणे तेओए नक्की कर्यु हतुं ते प्रमाणे विराटराजना द्वारपाळने तेमणे जणाव्युं अने द्वारपाळे बधी हकीकत विराटराजने सविस्तर जणावी. विराटराजे तेमने बोलाव्या एटले जीवदया सहित जाणे पांच परमेष्ठी प्रवेश करता होय तेम द्रौपदीसहित पांचे य पांडवो विराटना दरबारमा प्रवेश्या. (५) आ प्रमाणे पोतानी सेवा बजावतां पांडवोए अगीआर मास पूरा कर्या; अने जाणे कीचकने माये कालदंड पडतो न होय तेवो बारमो