________________
मदे मस्त बनेली नर्मदा माहेश्वरपुरना पति सहस्रार्जुनने अने लंकापति रावणने कामाविष्ट करे छे. (३) ते वसंत अने ते रेवानां जळ इत्यादि जोईने सहस्रार्जुनने जळक्रीडा करवा हरख थाय छे. यांत्रिको यंत्रो घडे नर्मदानो प्रवाह रोके छ; अने सहस्रार्जुन पोताना अंतःपुर सहित नर्मदामा प्रवेश करे छे. (४) जळक्रीडानुं जुदे जुदे प्रकारे वर्णन कवि करे छे. (५-६) अंतःपुरनी राणीओ सहस्रकिरण साथे जुदा जुदा प्रकारनी क्रीडा करे छे, तेनुं वर्णन कवि करे छे. (७) आ जळक्रीडानां वखाणो देवो करे छे. (८) रावण रेतीनी वेदी बनावी जिनवरनी ते उपर स्थापना करी पूजा करे छे. एटलामां तो यान्त्रिको यत्रोने छोडे छे एटले प्रवाह रेलाई पूजासामग्री धोई नाखे छे. रावण गुस्से थाय छ अने आ पिशुनता करनारने शोधवा माणसो मोकले छे. (९) पछी राणीओना तूटेला अलंकार, पुष्प, कुंकुम इत्यादि खेंची जती नर्मदा तरफ रावण नजर करे छे. कवि कल्पना करे छे के नदी जिनवरनी प्रतिमाने खेंची गई कारणके ते जिन. प्रभु, स्त्रीओ साथेना विलासथी अलिप्त रहेता हता अने तेमणे पोतानी निष्कामताथी नदीने गुस्से करी हती. (१०) एटलामां रावणे मोकलेला गवेषको पाछा वळे छ; अने तेमांनो एक तेनी अपूर्व कामलीला वखाणे छे अने ए कामलीलानो निर्मापक सहस्रार्जुन छे तेनी खबर करे छे. (११) बीजो गवेषक तेना अंतःपुरने विविध उपमाओए करी वखाणे छे. (१२) त्रोजो गवेषक यन्त्रोने वखाणे छ; अने यान्त्रिकोए छेवटे यन्त्रोने छोडी दीधा तेथी प्रवाह रेलाई गयो अने रावणनी पूजा तेणे धोई नाखी - ते बाबत रजु करे छे. आ सांभळी रावण पोताना हाथे तरवार खेचे छे. ३. पद्यरचना :
आ उद्धरणमा १३ कडवकनो संधि लेवामां आव्यो छे. दरेक कडवक १० पंक्तिओनुं छे. छेल्ली बे पंक्तिओ घत्तानी छे. आखा संधिने मथाळे ध्रुवपद छे चतुर्मुख स्वयंभूनी कृतिमां कडवकना देहनी लगभग सरखी रीते ८ पंक्तिओ छे. त्रिभुवन स्वयंभूमां कडवकनी पंक्तिसंख्या वधे छे. पुष्पदन्त अने धनपालमां कडवकनी पंक्तिसंख्या बहलती जाय छे अने तेनो कोई नियम ज रहेतो नथी. आ चतुर्मुखनी प्राचीनता सिद्ध करवानो एक पूरावो छे. आ उद्धरणमा ध्रुवपद, अने घत्तानो एक अने कडवकना देहनो एक - एम बे छंदो वपराया छे. ध्रुवपद अने घत्ताना छंदनी मात्रागणना : ८ + ८ + १४ = ३० मात्रानी छे; पंक्तिनी वचमां बे यति छे अने ते यति प्रासबद्ध छे : विमले विहाणऍ। कियएँ पयाणऍ। उययइरिसिहरे रवि दीसइ । मइ मेल्लेप्पिणु । निसियरु लेप्पिणु । कहि गय णिसि गाइ गवेसइ ॥