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________________ कलपातु] गौरीअण-वण्णा चक्की भहि मई मंडुवासर कोलन्ति णि ण दिट्टी पर ॥ ७ ॥ एक्कक्कम-वडिअ-गुरुअर-पेम्म-रसे सरि हंस-जुवाणउ कीला काम-रसे ॥ ८ ॥ करिणी-विरह-संतावित काणणे मंधुद्ध अ-महु-अरु ॥ ९॥ हो पई पुच्छिमि अक्खहि गवर ललिअ-पहारें पोसिअ-तरु वरु । दूर-विणिज्जिअ-सस हर-कंती दिट्ठी पिअ पहं संमुह जंती ॥ १० ॥ .. (पं.) भणहि मई (पी) भण्मह मई २ (पं.) एककमा जेने अनुसरी (र.) एकक्रम; जो के (पं.) नी छाया ___ एकक; (पी.) एक्केकम.. ९. (पं) संताविअओ-महुअरु । (पी.) संताविअओ-महुअरओ १०. (ध्रुव) णामियतरुवरु सूचवें छे. गोरोचनवर्ण चक्र भण माम् मधुवासरे क्रीडन्ती प्रिया न दृष्टा त्वया ॥ ७ ॥ एकक्रमवर्धितगुरुतरप्रेमरसेन सरसि हंसयुवा क्रीडति कामरसेन ॥ ८ ॥ करिणीविरहसंतापितः कानने गन्धोद्धतमधुकरः ॥ ९ ॥ अहं त्वां पृच्छामि आख्याहि गजवर ललितप्रहारेण नाशिततरुवर । दूरविनिर्जितशशधरकान्तिः । दृष्टा प्रिया त्वया संमुखं यान्ती ॥ १०॥
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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