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________________ वसुवघरच्चाउ] दस-दिसि-वह णिहित्त-मुत्ताहल गिरि-कंदरि वसंति जहिं णाहल ओसहि दीवातेय दाविय पह जहि तमाल-तमविय लक्खि परह। जहिं संबरहिं संचिज्जइ तरु-हलु हरिणिहिं चिज्जइ कोमल-कंदलु ॥गत्ता॥ तहिं कमलायरु दिठ्ठ णव-कमलहिं छण्णउ धरणि-विलासिणिआए जिणहु अग्घु णं दिण्णउ ॥ १२१ (१०) सीयल-स गाह-गय-थाह-सलिलालि कंजरस लालस-चलालि. कुल-कालि मत्त जल हत्थि कर-भीय डसणालि-वारि-पेरंत-सोहंत-णवणालि मंद-मयरंद-पिंजरिय-वर कूलि तीर-वण महिस-दुक्कंत-सलि पंक-पल्हत्थ-लोलंत-वर-कोलि कीर-कारंड-कल राव-हलबोलि कंकाचल-चंचु-परिउबिय-बिसंसि लच्छिणेऊर-खुडविय-कल हंसि१२६ अक्कारह दंसण-पओसिय-रहंगि वाय-हय-वेविर-पघोलिय-तरंगि। पहंत-विहरंत-विहसंत-सुर सत्थि एंत-जल माणुस विसेस-हय-हत्थि दशदिशापथे निहितमुक्ताफलाः गिरिकंदरे बसन्ति यत्र नाहलाः ओषधिदीपतेजसा दर्शितः पन्थाः यत्र तमालतमोऽभिभूता लक्ष्मीः परेषां यत्र शबरैः सञ्चीयते तरुफलानि हरिणीभिः चोयते कोमलकंदलानि ॥ घत्ता ॥ तत्र कमलाकरः दृष्टः नवकमलैः छन्नः धरणीविलासिन्या जिनाय अयः यथा दत्तम् ।। (१०) शीतलसग्राहगतस्ताघसलिलालये कंजरसलालसचलालिकुलश्यामे मत्तजलहस्तिकर-भीतदशनालि-वारिप्रेरयत्-शोभमान-नवनाले मंदमकरन्दपिञ्जरितवरकूले तीरवनमहिषढौकमानशार्दूले पर्यस्तपङ्कलोलमानवरकोले कीरकारंडकलरावकलकलायिते कङ्कचलचंचुपरिचुंबितबिसां लक्ष्मोनू पुरक्षोदितकलहंसे अर्करथदर्शनप्रतोषितरथांगे वातहतवेपमानधूर्णिततरङ्गे स्नात्-विहरत्-विहसत्-सुरसार्थे आयात्-जलमनुष्यविशेषहयहस्तिनि
SR No.023391
Book TitleApbhramsa Pathavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Chimanlal Modi
PublisherGujarat Varnacular Society
Publication Year1935
Total Pages386
LanguageApbhramsa
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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