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________________ ७६ प्राकृत व्याकरण एत्व होता है एवं मिस के पर में रहने पर विकल्प से से अपर में आम का हं आदेश होता है । ए ( ६ ) अदन्त ( अ से अन्त होनेवाले ) अन्तिम अ के स्थान में होता है, यदि उनसे ( सप्तमी - एकवचन ) और ङस् ( पष्ठी - एकवचन ) विभक्तियाँ आती हों। जैसे :- देवेहि, णउलेसु ( देवैः देवेषु, नकुलैः, नकुलेषु ) देवेसु शब्दों के आगे ि से भिन्न णउलेहिं, ( १० ) अदन्त ( अ से अन्त होनेवाले ) शब्द से पर में आनेवाले भिस के स्थान में केवल ( अनुनासिक एवं अनुस्वार से रहित ), सानुनासिक और सानुस्वार 'हि' आदेश होता है । जैसे— देवेहि, देवेहि, देवेहिं णउलेहि, णउलेहि, 'उलेहिं (देवैः, नकुलैः ) विशेष – 'प्राकृतप्रकाश' और 'कल्पलतिका' के अनुसार भिस् के स्थान में केवल हिम् आदेश किया जाता है । ( ११ ) अदन्त ( अ से अन्त होनेवाले ) शब्द से पर में आनेवाले ङसि के स्थान में तो, दो, दु, हि और हित्तो आदेश होते हैं । दो और दु के ढ़कार का लुक् भी होता है । जैसे : — देवत्तो, देवाओ, देवाउ, देवाहि और देवाहितों' (देवात् ) I - विशेष – (क) प्राकृतप्रकाश और कल्पलतिका के - अनुसार ङसि के स्थान में आदो, दु तथा हि आदेश किये जाते हैं । १. हेमचन्द्र ( ३. ८. ) के अनुसार ङसि का लुक् होकर एक रूप 'देवा' भी होता है ।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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