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________________ 9 . प्राकृत व्याकरण - - घेत्तूण प्राकृत संस्कृत [ क्त्वा = तुम् ] दग्ध्वा मोत्तं । [,, ,,] मुक्त्वा भमिअ [ क्त्वा = अत् ] भ्रमित्वा रमिअ [,, ,,] रन्त्वा [क्त्वा = तूण ] गृहीत्वा काऊण [ , ,,] कृत्वा भोत्तुआण' [क्त्वा तुआण] भुक्त्वा सीउआण [,, ,] सवित्वा विशेष- (क) कहीं-कहीं तुम्वाले म् के अनुस्वार का लोप हो जाता है। जैसे :-वन्दित्तु । व का लोप करके वन्दित्वा संस्कृत का वन्दित्ता प्राकृत रूप बनता है । (ख) शौरसेनी में क्त्वा के स्थान में इय और दूण आदेश होते हैं । कृ और गम धातुओं से अदूय होता है । मागधी-आवन्ती में क्त्वा के स्थान में तूण आदेश होता है। अपभ्रंश में क्त्वा के स्थान में इइ, उइ, विअवि आदेश होते हैं। (३७ ) इदमर्थ में प्रयुक्त प्रत्ययों के स्थान में 'केर' आदेश होता है । जैसे :-तुम्हकेरो, अम्हकेरो ( युष्मदीयः, अस्मदीयः) १. २. हेमचन्द्र २.१४६ में भेत्तुआण और सेउआण रूप मिलते हैं । ३. किसी से सम्बन्ध रखनेवाला पुरोवर्ती पदार्थ । जैसे—तुम्हारा यह प्रन्थ, इस अर्थ में संस्कृत में 'युष्मदीयो ग्रन्थः' ऐसा प्रयोग इदमर्थ में है।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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