SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अध्याय ६३ खत्रो (क्षयः); लखणं ( लक्षणम् ); छ और ख आदेश जैसे:छीणं, खीणं (क्षीणम् ); झ और ख आदेश जैसे:-मिजइ, खिद्यति (विद्यति) (१४) अक्ष्यादि गण के शब्दों में क्ष के स्थान में ख न होकर छ आदेश होता है । जैसे:-अच्छी (अक्षि); उच्छू (इक्षुः) विशेष—स्थगित शब्द के स्थ के स्थान में भी उक्त नियम से छ आदेश हो जाता है। जैसेः-छइअं (स्थगितम्) (१५) उत्सव अर्थ के वाचक क्षण शब्द में क्ष के स्थान में छ आदेश होता है। उत्सव अर्थ में जैसे:-छणो; समय अर्थ में जैसे:-खणो ( क्षणः ) (१६) संयुक्त क्म और ड्म के स्थान में प आदेश होता है । क्म में जैसे-रुप्पं, रुप्पिणी ( रुक्मम् , रुक्मिणी)। इम में जैसे:-कुप्पलं (कुड्मलम् ) विशेष—कहीं-कहीं क्म के लिए च्म आदेश भी देखा जाता . है। जैसेः-रुच्मी (रुक्मी) (१७) एक और स्क के स्थान में ख आदेश होता है, यदि उन संयुक्ताक्षरों से घटित शब्द द्वारा किसी नाम (संज्ञा) की प्रतीति होती हो । क का ख जैसे:-पोक्खरं(पुष्करम्);पोक्ख * कल्पलतिका के अनुसार अक्ष्यादि गण यों हैं: अत्राक्षिचक्षुरक्षुएणक्षार उत्क्षिप्तमक्षिकैः। दक्षो वक्षः सदृक्षोऽक्ष क्षेत्रक्षीरेक्षुकुक्षयः ॥ तुधा चेत्यादयः शब्दा अक्ष्यादिगणसम्मताः।...
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy