SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत व्याकरण विशेष—(क) यह नियम इसी अध्याय के नियम १६ का अपवाद है। (ख) विद्युत् शब्द का प्राकृत रूप विज्जू होता है । (ग) उक्त नियम से जो आ होता है, उसका उच्चारण कभी-कभी ईषत्स्पृष्टतर या के के समान भी होता है। सरिया, पाडिवया, संपया। (घ) अप्सरस् का एक रूप अच्छरसा भी होता है। (२१) स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान रेफान्त शब्द के अन्तिम र का रा आदेश होता है । जैसे-धुराक, गिरा, पुरा (धूः, गीः, पूः) _ (२२) 'क्षुध्' शब्द के अन्त्य व्यञ्जन का 'हा' आदेश होता है । जैसे-छुहा (क्षुत्) (२३) 'शरत्' प्रभृति शब्दों के अन्तिम व्यञ्जन के स्थान में 'अ' आदेश होता है। जैसे-सरत्र, भिसत्र (शरत्, भिषक् ) * दुव्वोज्झा वि अवलम्बिश्रा कजधुआ। राव० ४. ४४ +पासम्मि ठिा तस्स य महूअगोरीश्रो महुअमहुरगिरा। (पार्चे स्थिताः तस्य याः मधूकगौर्यो मधूकमधुरगिरः।) कुमा० पा० १. ७५ * प्राकृत प्रकाश के 'शरदो दः' वर० सू० ४. १० के अनुसार शरत् के अन्तिम व्यञ्जन का 'द्' श्रादेश' होता है। इसके अनुसार शरत् के लिए 'सरस' न होकर 'सरदो' रूप होता है। $ सीमा वाह विहानो दहमुहवझ दिअहो उवगत्रो सरो राव० १. १६
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy