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________________ -२२२ प्राकृत व्याकरण (५६) अकारान्त यादृश, तादृश, कीदृश और ईदृश के स्थान में जइस, तइस, कइस और अइस रूप होते हैं । जैसे:जइसो, तइसो, कइसो और अइसो ( यादृशः, तादृशः इत्यादि) (५७) अपभ्रंश में यत्र के रूप जेत्थु और जत्त तथा तत्र के रूप में तेत्थु और तत्तु होते हैं। जैसे:-जेत्थु, जत्तु ( यत्र ); तेत्थु, तत्तु' (तत्र)। (५८) अपभ्रंश में यावत् के रूप जाम (जाव), जाउं, जामहिं और तावत् के रूप ताम ( ताव), ताउ,तामहि (तावत् ।। जेहु तेहु न वि होइ बढ़ सई नारायण एहु॥ ( मया भणितः बलिराज त्वं कीदृग् मार्गणः एषः । याक, तादृक् नापि भवति मूर्ख स्वयं नारायणः इदृक् ॥) १. जइ सो घडदि प्रयावदी केत्थु वि लेप्पिणु सिक्खु । जेत्थु वि तेत्थु वि एत्थु जगि भण तो तहि सारिक्खु ॥ ( यदि स घटयति प्रजापतिः कुत्रापि लात्वा शिक्षाम् । यत्रापि तत्रापि अत्र जगति भण तदा तस्याः सदृक्षीम् ॥) २. जाम न निवडइ कुम्भ-यडि सीह-चवेड-चडक्क । ताम समत्तहँ मयगलहं पइ पइ वजइ ढक्क ॥ ( यावन्न निपतति कुम्भ-तटे सिंह चपेटाचटात्कारः । तावत्समस्ताना मदकलानां पदे पदे वाद्यते ढका ॥) तिलहँ तिलत्तणु ताउँ पर जाउँ न नेह गलन्ति । जामहि विसमी कज्ज-गइ जीवहँ मज्झे एइ ॥ (तिलानां तिलत्वं तावत् परं यावत् न स्नेहा गलन्ति । यावत् विषमा कार्यगतिः जीवानां मध्ये आयाति ॥) तामहिं अच्छउ इयर जणु सुअणु वि अन्तर दे । ( तावत् आस्तामितरः जनः सुजनोऽप्यन्तरं ददाति ॥)
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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