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________________ २०२ प्राकृत व्याकरण ति आदेश होता है। जैसेः-यातिसो, तातिसो, भवातिसो, अब्बातिसो, युम्हातिसो, अम्हातिसो ( यादृशः, तादृशः, भवा. दृशः, अन्याशः, युष्मादृशः, अस्मादृशः)। (१७ ) पैशाची में इच और एच (देखो छठे अध्याय में वर्तमान काल के प्रत्यय) के स्थान में ति आदेश होता है । जैसे:-वसुआति, भोति, नेति, तेति । (८) पैशाची में अकार से पर में आनेवाले इच और एच के स्थान में ते और ति दोनों आदेश होते हैं। जैसे:-लपते, लपति; अच्छते, अच्छति; गच्छते, गच्छति; रमते, रमति । (१६) पैशाची में इच और एच के स्थान में, भविष्यत् काल में, स्सि न होकर एय्य आदेश ही होता है। जैसे :हुवेय्य' ( भविष्यति)। (२०) पैशाची में अकार से पर में आनेवाले ङसि के स्थान में आतो और आतु ये दो आदेश होते हैं । जैसे:-तुमातो, तुमातु; ममातो, ममातु । (२१ ) पैशाची में टा के साथ तद् और इदम् शब्दों के स्थान में नेन और खीलिङ्ग में नाए आदेश होते हैं। जैसे :नेन कतसिनानेन ( तेन कृतस्नानेन अथवा अनेन इत्यादि ); पूजितो च नाए ( पूजितश्चानया)। प्राकृत-प्रकाश के अनुसार पैशाची के विशेष शब्दसंस्कृत पैशाची प्रा. प्र. अ. सूत्र मेघः मेखो . .. १० २ गगनम् गकनं राजा १. तं तद्भून चिन्नितं रञा का एसा हुवेय्य ( तां दृष्ट्वा चिन्तितं राज्ञा का एषा भविष्यति ! राचा
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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