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________________ दशम अध्याय [पैशाची] (१) पैशाची की प्रकृति शौरसेनी है। (२) पैशाची में ज्ञ के स्थान में ब्ञ होता है। जैसे:पञा (प्रज्ञा ), स ( संज्ञा), सव्वो ( सर्वज्ञः ), ञानं (ज्ञानम् ), विज्ञानं ( विज्ञानम् )। (३) राजन् शब्द के रूपों में जहाँ-जहाँ ज्ञ रहता है, उस ज्ञ के स्थान में चिञ् आदेश विकल्प से होता है। जैसे :राचिबा लपितं, रूसा लपितं ( राज्ञा लपितम् ), राचियो धनं रब्यो धनं ( राज्ञो धनम् )। (५) पैशाची में न्य और ण्य के स्थान में ऊब आदेश होता है। जैसे :-कञका अभिमब्यू ( कन्यका, अभिमन्युः ) । पुञकम्मो, पुज्ञाहं ( पुण्यकर्म, पुण्याहम् ) । (५) पैशाची में णकार का नकार हो जाता है। जैसे :गुनगनयुत्तो (गुणगणयुक्तः ), गुनेन (गुणेन)। (६) पैशाची में तकार और दकार के स्थान में तकार हो जाता है। जैसे :-भगवती, पव्वती (भगवती, पार्वती)। मतनपरवसो (मदनपरवशः), सतनं (सदनम् ), तामोतरो (दामोदरः), होतु ( होदु शौ०)। . (७) पैशाची में लकार के स्थान में ळकार हो जाता है । जैसे:-सळिळं, कमळं ( सलिलं कमलम्) ।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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