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________________ १३८ आ + रुह मुह दह ग्रह प्राकृत व्याकरण चड, वलग्ग, आरुह गुम्म, गुम्मड, मुज्झ अहिऊल, आलुङ्ख, डह बिह, हर, पङ्ग, निरुवार, अहिपचअ, बुध क्रुध सद घेत्' बोत पच ( ३३ ) क्त्वा, तुम और तव्य के पर में रहने पर रुद, भुज और मुच धातुओं के अन्त्य वर्ण का त होता है। जैसे :- रोण, रोक्तं, रोत्तन्वं; भोन्ण, भोत्तं, भोत्तव्वं मोन्तूण, मोतं, मोत्तव्यं । (३४) भूत और भविष्यत् काल के प्रत्ययों एवं तवा, तुम और तव्य के पर में रहने पर कृ धातु का 'का' आदेश होता है । (३५) कुछ संस्कृत धातुओं के निम्नलिखित प्राकृत आदेश होते हैं : संस्कृत इष अस भिद प्राकृत इच्छ अच्छ भिंद बुह्य कुह्य सड संस्कृत यम छिद बढ संवेल्ल युध गृध सिध प्राकृत जच्छ छिंद जुह्य गिह्य सिह्य पत वृध वेष्ट संवेष्ट उद् + वेष्ट वेल्ल, उ ( ३६ ) खाद और धाव धातुओं के होता है । जैसे :- खाइ, खाअइ; धाइ, धाअइ (खादति, धावति ) अन्त्य वर्ण का लुक् 1 पड वेड १. २. केवल क्त्वा, तुम और तव्य के पर में रहने पर उक्त आदेश होता है ।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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