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________________ ( १२ ) और राक्षसी की तथा कंसवध में कुब्जक और रजक की बोली मागधी भाषा में है । मागधी गद्य और पद्य दोनों की ही भाषा है । यद्यपि उच्च कुल की एवं शिक्षित नारियाँ गद्य-पद्य में क्रमशः शौरसेनी, महाराष्ट्री का ही व्यवहार करती हैं, तो भी कई नाटकों में नारी का पाठ संस्कृत भाषा में भी मिलता है । जैसे उत्तररामचरित में तापसी, आत्रेयी, वासन्ती, तमसा, मुरला, अरुन्धती, पृथिवी, भागीरथी और गङ्गा की; कर्णसुन्दरी में सखी और नायिका के पद्य की; कंसवध में दूती विलासवती, देवकी और केवल कुछ स्थलों पर कुब्जा की बोली संस्कृत भाषा में पाई जाती है । प्रतिमा में भट एक स्थान पर शौरसेनी तथा दूसरे पर संस्कृत का प्रयोग करता है । किसी-किसी नाटक में ऐसा भी देखा जाता है कि जब कोई पात्र किसी दूसरे का अनुकरण करता है, तो वह अपनी भाषा छोड़कर अनुकार्य व्यक्ति की ही भाषा बोलता है | जैसे मुद्राराक्षस में संस्कृत का बोलने वाला विराध आहितुण्डिक का अनुकरण करने पर शौरसेनी भी बोलता है । वेणीसंहार में मुनिवेषधारी राक्षस संस्कृत भाषा का भी व्यवहार करता है । मृच्छकटिक में स्थावरक और रोहसेन नामक चाण्डालों तथा मुद्राराक्षस में आये चाण्डालों की बोली चाण्डाली कहलाती है । इन सब के अतिरिक्त जिन पात्रों की चर्चा नहीं की गई है, उनके साथ वे ही साधारण नियम लागू हैं । 1 साहित्यदर्पण में श्रेष्ठ चेट और राजपुत्रों की भाषा अर्द्धमागधी बतलाई गई है । परन्तु किसी नाटककार ने किसी भी पात्र के लिए इस भाषा का व्यवहार नहीं किया है । चेट का पाठ मृच्छकटिक में आया है, जो मागधी में है । इसी प्रकार राजपुत्रों की भाषा भी अर्द्धमागधी में नहीं है— 'चेटानां राजपुत्राणां श्रेष्ठानाञ्चार्द्धमागधी' ( साहि० ६, १६० )। साहित्यदर्पण में विश्वनाथ ने भाषा विभाग का वर्णन करते हुए लिखा है कि शिक्षित मध्यम तथा उच्च वर्ग के मनुष्यों की भाषा संस्कृत
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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