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________________ षष्ठ अध्याय ११६ (७) स्वरान्त धातु से भूत काल में सभी पुरुषों और वचनों में विहित प्रत्यय के स्थान में 'ही' 'सि' और 'ही" आदेश होते हैं । जैसे:-कासी, काही, काहीअ; ठासी, ठाही, ठाहीअ (अकार्षीत् , अकरोत् , चकार; तथा अस्थात् , अतिष्ठत् , तस्थौ ) विशेष-प्राकृतप्रकाश में ही और सी का विधान नहीं देखा जाता | उसके अनुसार एकाच धातु से केवल 'ही' आदेश होता है । देखिए-वर० ७.२४ (८) व्यञ्जनान्त धातु से भूतकाल में विहित सभी प्रत्ययों के स्थान में 'इअ' आदेश होता है । जैसे :-गण्हीअ (अग्रहीत् , अगृह्णात् , जग्राह) विशेष-( क ) केवल अस धातु के साथ भूतार्थक कुल पुरुष और वचन के प्रत्ययों के स्थान में 'आसि' और 'अहेसि' आदेश होते हैं। जैसे :-सो, तुमे अहं वा आसि । एवं अहेसि । देखिए-तेनास्तेरास्यहासी । हेम० ३. ६४ (ख) प्राकृतप्रकाश के अनुसार, अस धातु का, केवल भूतार्थक एकवचन के साथ एकमात्र 'आसि' आदेश होता है। देखिए वर. ७. २५ भविष्यत् काल में तिवादि तिङ् प्रत्ययों के स्वरूप :एकवचन बहुवचन प्रथम पु० हिइ हिन्ति, हिन्ते, हिरे मध्यम पु० हिसि हित्थ, हिरु .हिमि, हामि, हिस्सा, हिहा उत्तम पु° सामि, स्सम् १. देखिए-सी-ही-हीअ भूतार्थस्य । हेम० ३. १६२.
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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