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________________ षष्ठ अध्याय [तिङन्त विचार ] (१) प्राकृत में क्या, क्यष आदि प्रत्ययों के विधान के कोई विशेष नियम नहीं हैं। केवल हेमचन्द्र के व्याकरण में एक सूत्र ( ३.१३८) है, जिससे य के लुक के विषय में ज्ञात होता है । जैसे :-गरुआइ, गरुआअह; दमदमाइ, दमदमाअइ; लोहिआइ, लोहिआअइ । (२) प्राकृत में गणभेद (धातुओं के वर्गीकरण) की व्यवस्था नहीं की जाती है। (३) प्राकृत में तिप् आदि तिङ् कहलानेवाले प्रत्ययों के वर्तमान काल में वक्ष्यमाण रूप होते हैं । तथा अदन्त धातुओं को छोड़कर शेष धातुओं में 'आत्मनेपदी' और 'परस्मैपदी' का भेद नहीं माना जाता। वर्तमान काल के प्रत्यय एकवचन बहुवचन प्रथम पु० इ न्ति, न्ते, इरे मध्यम पु० सि इत्था , ह उत्तम पु० मि मो, मु, मा १. पाणिनि ( ३.४.३८ ) के अनुसार तिप् , तस् , मि, सिप् , थस् , थ, मिप् , वस् , मस् ; त, आताम् , म , थास् , प्राथाम् , ध्वम् , इ, वहिक , महिङ , इनमें ति से ऊ तक तिङ कहे जाते हैं। २. शौरसेनी में सभी धातु परस्मैपदी होते हैं।
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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