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________________ ६२ प्राकृत व्याकरण (४०) नपुंसक लिङ्ग में वर्तमान शब्दों से पर में आनेवाले संबोधन के 'सु' का लोप होता है । ( ४१ ) सु (प्रथमा के एकवचन ) के पर में रहने पर इदन्त- उदन्त नपुंसक शब्दों के अन्तिम इ और उ को दीर्घ नहीं होता है। अकारान्त नपुंसकलिङ्ग कुल शब्द के रूप : एकवचन प्रथमा कुलं द्वितीया "" संबोधन हे कुल प्रथमा दहिं, ह द्वितीया "" "" संबोधन हे दहि शेष रूप पुंल्लिङ्ग के समान चलते हैं । इकारान्त नपुंसक दधि शब्द के रूप : बहुवचन कुलाइँ, कुलाई, कुलाणि 99 महुँ, महु 99 प्रथमा द्वितीया " "" संबोधन हे महु दही, दही, दहीणि "" उकारान्त नपुंसक मधु शब्द के रूप : " " 99 महूइँ, महूई, महूणि "" "" "" शेष रूपों का ऊह पुंल्लिङ्ग आदि से कर लेना चाहिए । हलन्त शब्दों के साधनसंबन्धी नियम एवं उनके रूप :प्राकृत में हलन्त शब्द नहीं होते हैं । कुछ हलन्त शब्दों के
SR No.023386
Book TitlePrakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Prasad Mishra
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages320
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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