________________
बालकों के माता-पिता के प्रति
( गुजराती-संस्करण से ) शुष्क-तत्वज्ञान, साधारण-मनुष्यों की बुद्धि में नहीं आता । उनकी समझ में यह तभी आता है, जब कथाओं के द्वारा उन्हें समझाया जाय । सम्भव है, इस प्रकार कथाओं द्वारा दिये गये उपदेश का कोई प्रत्यक्ष-प्रभाव न दीख पड़े, किन्तु यह तो निश्चित ही है, कि सूक्ष्म- . रीति से इन कथाओं का संस्कार, सुननेवाले के मन पर पड़ता रहता है । यही कारण है, कि जैन-साहित्य का एक बड़ा भाग इस प्रकार की कथाओं से परिपूर्ण है। समय तथा लोकरुचि के अनुकूल, इन कथाओं के विद्वान लेखकों ने, शैली तथा भाषा का उपयोग किया है, तथापि जिस प्रकार माला की प्रत्येक गुरिया एक ही सूत्र में गुंथी होती है, उसी प्रकार ये सब कथाएँ शान्त-रस-वैराग्यभावना की पुष्टि में ही रची गई हैं।
इन कथाओं की रचना का उद्देश्य, मनुष्य-शरीर में रहनेवाली पाशविक-वृत्तियों को उत्तेजित कर, नीच-कोटि का आनन्द देना नहीं है । यही कारण है, कि इनमें शृङ्गार, वीर, करुणा तथा अद्भुत आदि सभी रसों का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग होने पर भी, उन्हें केवल गौण-स्थान