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________________ धर्म के लिये प्राण देनेवाले महात्मागण १-धर्मरुचि अणगार कड़आ। नागिला नामक ब्राह्मणी ने, भाँति-भाँति के भोजन बनाये । तेज़ और चरपरे साग तयार किये, जिनमें तूंबे का साग बनाते समय यह न देखा, कि तूंबामीठा है सब साग तयार होजाने पर, जब उनमें से एक-एक टुकड़ा चखा, तो उसे मालूम होगया, कि मैंने कड़ए-ख़ूबे का साग बना डाला है, जिसे कोई भी न खा पावेगा । अतः उसने इस साग का बर्तन उठाकर एक तरफ रख दिया। भोजन का समय होने पर, सब आये और भोजन कर गये । इतने ही में 'धर्मलाभ ' कहते हुए, धर्मरुचि नामक एक साधु उसके यहाँ भिक्षा लेने आये। वे, एक-मास से उपवास कर रहे थे । नागिला ने सोचा, कि-" लाओ यह साग इन साधुजी को ही क्यों न दे दूँ, मेरे यहाँ बाहर डालने
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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