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________________ २१ श्री ऋषभदेव आया हुआ था। अतः, उन्होंने श्री ऋषभदेवजी से प्रार्थना की, कि-"भगवन् ! मेरे यहाँ से भिक्षा ग्रहण करके मुझे पवित्र कीजिये । आपके लेने योग्य, यह गन्ने का रस हाज़िर है।" यह सुनकर, श्री ऋषभदेवजी ने अपने दोनों हाथ मिलाकर फैला दिये । हाथों की अञ्जलि ही उनका बर्तन थी। इस तरह, एक वर्ष के बाद, श्रेयांसकुमार ने श्री ऋषभदेवजी को शुद्ध-भिक्षादी। ___ जिस भोजन से, तप की पूर्ति होती है, उसे " पारणा" कहते हैं। श्री ऋषभदेवजी ने पारणा किया, अतः सब लोग प्रसन्न हुए। उन सबने, श्रेयांसकुमार को धन्यवाद दिया और कहा, कि" धन्य हैं ऐसे सुपात्र और धन्य है ऐसे सुपात्र को ऐसा दान देनेवाला ।" : १० : श्री आदिनाथ भगवान, इस तरह बहुत दिनों तक भ्रमण करते रहे । घूमते-घूमते, उन्होंने संसार का सच्चा और पूरा ज्ञान, यानी ' केवलज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने, लोगों को उपदेश दिया कि—अपनी भूलों को सुधारकर जीवन को पवित्र बनाओ, किसी जीव का वध मत करो, सब के साथ प्रेम का बर्ताव
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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