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________________ न्यायतीर्थ - न्यायविशारद - उपाध्याय श्री मंगलविजयजी कृत अन्यान्य ग्रन्थो. १ जैन साहित्यमां पदार्थनी व्यवस्था. हिन्दी भाषामां संस्कृत भाषामां २ जैन तत्त्वप्रदीप जैन दर्शनमां प्रतिपादित पदार्थोंने जाणवा माटे न्याय शैलीमां मुख्य साधनरूप छे, आ ग्रंथमां दरेक पदार्थनुं लक्षण प्रदर्शित करवा पूर्वक स्वरूप समजाववामां आवेल छे, तेमां सात अधिकार राखवामां आव्या छे. मूल्य रू. १ गुजराती भाषामां ३ सप्तभंगीप्रदीप स्याद्वाद - सप्तभंगीना स्वरूपना बोध सिवाय जैनदर्शनमां प्रवेश थवो अशक्यप्राय होवाथी तेनो दरेक लोको लाभ ले, ते खातर नवीन शैलीथी गुजराती भाषामां आ ग्रन्थ रचवामां आव्यो छे. ग्रन्थना प्रमाणमां किंमत घणी थोडी राखवामां आवी छे. पृष्ठ १५०. मूल्य रू. 0/= ४ तत्त्वाख्यान (पूर्वार्ध ) गुजरातीमां बौद्ध, नैयायिक, सांख्य अने वैशेषिक आ चार दर्शनोना आचार, पदार्थोनी व्यवस्था विगेरे जाणवा माटे आ एक
SR No.023377
Book TitleDharm Dipika Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvijay
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1925
Total Pages828
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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