________________
श्री सुभद्रगिरि नमो, भद्र ते मंगल रूप।
जल तरु रज गिरिवर तणी, शीष चढावे भूप। सिद्धा.१७ ।। विद्याधर सुर अप्सरा, नदी शेव्रुजी विलास। करता हरता पाप ने, भजिये भवि कैलास।। सिद्धा.१८ ।।
बीजा निर्वाणी प्रभु, गई चौवीसी मोझार।
तस गणधर मुनि मां वडा, नामे कदंब अणगार।। प्रभु वचने अणसण करी, मुक्तिपुरीमा वास। नामे कदम्बगिरि नमो, तो होय लील विलास।। सिद्धा.१९ ।।
पाताले जस मूल छे, उज्ज्वलगिरि नुं सार।
त्रिकरण योगे वंदतां, अल्प होय संसार।। सिद्धा.२० ।। तन, मन, धन, सुत, वल्लभा, स्वर्गादिक सुख भोग। जे वंछे ते संपजे, शिवरमणी-संजोग।। विमलाचल परमेष्ठी नं, ध्यान धरे षट्मास। तेज अपूरव विस्तरे, पूरे सघली आश।।
त्रीजे भव सिद्धि लहे, ए पण प्रायिक वाच ।
उत्कृष्टा परिणाम थी, अंतरमुहूरत साच।। सर्व कामदायक नमो, नाम करी ओलखाण। श्री शुभवीर विजय प्रभु नमतां क्रोड कल्याण।। सिद्धा.२१ ।।
***
इस प्रकार शत्रुजय तप, पुंडरिक तप, ज्ञान पंचमी, अक्षय तृतीया आदि तप इस गिरि पर विशेष फलदायी होते हैं।
त्रितीर्थी