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वीस कोडीशुं पाण्डवा, मोक्ष गया इणे ठाम।
एक अनंत मुगते गया, सिद्धक्षेत्र तिणे नाम ।। सिद्धा.३ ।। अडसठ तीरथ न्हावतां, अंतरंग घड़ी एक। तुम्बी जल स्नाने करी, जाग्यो चित्त विवेक।।
चंद्रशेखर राजा प्रमुख, कर्म कठिन मल धाम ।
अचल पदे विमला थया, तिणे विमलाचल नाम।। सिद्धा.४।। पर्वत मां सुरगिरि वडो, जिन अभिषेक कराय। सिद्ध हुआ स्नातक पदे, सुरगिरि नाम धराय।।
अथवा चौदे क्षेत्र मां, ए समो तीरथ न एक।
तिणे 'सुरगिरि' नामे नमुं, जिहां सुरवास अनेक।। सिद्धा.५ ।। ऐंशी योजन पृथुल छे, ऊँच पणे छव्वीस। महिमाए मोटो गिरि, महागिरि नाम नमीश।। सिद्धा.६ ।।
गणधर गुणवंता मुनि, विश्व माहे वंदनीक।
जेहवो तेहवो संयमी, ए तीथ्रे पूजनीक।। विप्र लोक विषधर समा, दुःखिया भूतल मान। द्रव्य लिंगी कण क्षेत्र सम, मुनिवर छीप समान।।
श्रावक मेघ समा कह्या, करता पुण्यनुं काम।
पुण्य नी राशि वधे घणी, तिणे पुण्यराशि नाम ।। सिद्धा.७ ।। संयमधर मुनिवर घणा, तप तपता एक ध्यान। कर्म-वियोगे पामिया, केवल लक्ष्मी निधान ।।
लाख एकाणुं शिव वर्या, नारद | अणगार। नाम नमो तिणे आठमुं, श्रीपदगिरि निरधार।। सिद्धा.८ ।।
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त्रितीर्थी