________________
(१७) एक बार गिरिराज की पूजा (गिरिपूजन) अर्थात् पुरानी तलहटी
से जाकर श्री कल्याण विमल देहरी, श्री मेघमुनि के स्तुप की देहरी, श्री गोडी पार्श्वनाथ की देहरी तथा उसके बाद जय तलहटी से लगाकर रामपोल तक जो-जो चरण पादुकाएँ अथवा प्रतिमाजी हैं, उनकी पूजा करें, ताकि यदि कोई आशातना हुई हो, तो उसका
निवारण हो जाये। (१८) नित्य नौ खमासमणा निम्नलिखित दोहे बोलकर दें:
नौ खमासमणा सिद्धाचल समरं सदा, सोरठ देश मोझार।
मनुष्य जन्म पामी करी, वन्दं वार हजार ।।१।। सोरठ देश मां संचर्यो, न चढ्यो गढ़ गिरनार ।
शेव्रुजी नदी नाह्यो नहीं, एनो एले गयो अवतार।।२।। शेव्रुजी नदी मां नाही ने, मुख बांधी मुख कोश।
देव युगादि पूजिये, आणी मन सन्तोष।।३।। एकेकुं डगलं भरे, शेजा सामु जेह।
ऋषभ कहें भव क्रोड़नां, कर्म खपावे तेह ।।४।। शेजूंजा समो तीरथ नहि, ऋषभ समो नहीं देव।
गौतम सरीखा गुरु नहीं, वली-वली वंदु तेह ।।५।। जग मां तीरथ दोय वडा, शेव्रुजय, गिरनार।
एक गढ़ ऋषभ समोसर्या, एक गढ़ नेम कुमार ।।६।। सिद्धाचल सिद्धि वर्या, मुनिवर कोडी अनंत।
आगे अनंता सिद्धशे, पूजो भवि भगवंत ।।७।।
46
त्रितीर्थी