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टुकड़े हो गये । इस बात को गुणभद्राचार्य ने उत्तरपुराण में इस प्रकार लिखा है
'नागी नागश्च तच्छेदात् द्विधाखण्डमुपागतौ । ७३/१०३
पार्श्वनाथ चरित के रचयिता वादिराज सूरि के अनुसार पञ्चाग्नि तप करते समय अग्नि में जलती हुई लकड़ी के अन्दर बैठे हुए नाग-नागिन जल रहे थे। पार्श्वनाथ के कहने पर तापस को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इस लकड़ी के अन्दर नाग-नागिन हो सकते हैं । तब पार्श्वकुमार ने लकड़ी को काट कर उसमें से अध जले नाग-नागिन को बाहर निकाला था । ८. तापस मर कर कहाँ उत्पन्न हुआ
पूर्व भवों का वैरी कमठ का जीव महीपाल नामक तपस्वी पञ्चाग्नि तप कर रहा था । पञ्चाग्नि तप के लिए जो लकड़ियाँ जल रही थीं उनमें से एक लकड़ी के भीतर बैठे नाग और नागिन भी जल रहे थे। श्री पार्श्वजिन ने अवधिज्ञान से इस बात को जानकर इस तपस्वी से कहा कि हिंसामय कुतप क्यों कर रहे हो। इस लकड़ी के अन्दर नाग-नागिन जल रहे हैं। इस बात को सुनकर वह तपस्वी क्रोधित होकर बोला कि ऐसा नहीं हो सकता है । आपने कैसे जान लिया कि इस लकड़ी के भीतर नाग-नागिन बैठे हैं। तब उस तापस को विश्वास दिलाने के लिए कुल्हाड़ी मंगाकर लकड़ी को काटा गया और पार्श्वकुमार ने जलती हुई लकड़ी से अधजले नाग-नागिन को बाहर निकाला। श्री पार्श्वजिन की इस बात से वह तापस क्रोधित हो गया कि इन्होंने मेरी तपस्या में विघ्न उपस्थित कर दिया है। वह पूर्व भवों का वैरी तो था ही, किन्तु इस घटना से उसने श्री पार्श्वजिन के साथ और भी अधिक वैर बाँध लिया ।
९. णमोकार मंत्र का माहात्म्य
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पार्श्वकुमार ने नाग-नागिन को णमोकार मंत्र सुनाया था।
त्रितीर्थी