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ग्यारहवें भव में शम्बर नामक ज्योतिषी देव हुआ। मरुभूति का जीव मरकर हाथी हुआ, फिर स्वर्ग में देव हुआ, वहाँ से आकर विद्याधर हुआ, फिर स्वर्ग में देव हुआ। तदनन्तर स्वर्ग से आकर वज्रनाभि चक्रवर्ती राजा हुआ। इसके बाद ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुआ। फिर वहाँ से आकर आनन्द नामक राजा हुआ। तदनन्तर आनत स्वर्ग में इन्द्र हुआ और वहाँ से च्युत होकर दसवें भव में पार्श्वनाथ हुए। इन सभी भवों में पार्श्वनाथ के जीव और कमठ के जीव में वैर चलता रहा। ६. पार्श्वनाथ के जीवन से सम्बन्धित घटनायें
आचार्य समन्तभद्र ने सर्वप्रथम स्वयम्भूस्तोत्र में ५ श्लोकों द्वारा पार्श्वनाथ का स्तवन किया है। इनमें से प्रथम श्लोक में कमठ के जीव शम्बर देव द्वारा किये गये उपसर्ग का तथा द्वितीय श्लोक में धरणेन्द्र द्वारा किये गये उपसर्ग के निवारण का वर्णन है।
तमाल वृक्ष के समान नील वर्णयुक्त, इन्द्रधनुषों सम्बन्धी बिजली रूपी डोरियों से सहित, भयंकर वज्र, आंधी और वर्षा को बिखेरने वाले तथा शत्रु शम्बर देव के वशीभूत मेघों के द्वारा उपद्रवग्रस्त होने पर भी महामना श्री पार्श्वजिन योग से विचलित नहीं हुए। क्योंकि वे महामना अर्थात् इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त करने में तत्पर थे।
शम्बर नामक ज्योतिषी देव पूर्व बैर के कारण ध्यानमग्न पार्श्वनाथ पर ७ दिन तक भयंकर उपद्रव करता रहा। उसने भयंकर मेघ वर्षा के साथ ही पत्थर बरसाये, भयानक आंधी तूफान उत्पन्न किया, बिजलियाँ चमकाई और उससे जितना भी जो कुछ भी उपद्रव बन सकता था वह सब उसने किया। वे कमठ के जीव द्वारा किये गये भयंकर उपसर्ग से किञ्चितमात्र भी विचलित नहीं हुए।
उपसर्ग से युक्त ध्यानमग्न पार्श्वनाथ को धरणेन्द्र नामक नागकुमार जाति के देव ने बिजली के समान पीली कान्ति को धारण करने वाले
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त्रितीर्थी