________________
अष्टमपरिछेद.
“ ॥ जे मए अणंतेणं जवप्रमणेणं पुढविकाइया श्राकाश्या ते काइया वाउकाइया वणस्सका
GOS
एगें दिया सुहमा वा, बायरा वा, पत्ता वा, पत्ता वा, कोहेण वा, माणेण वा, मायाए वा, लोहे पांच दिश्रट्टे वा, रागेण वा, दोसे वा, घाइयावा, पीडिया वा, मणेणं वायाए कारणं, तस्स मिठामि डुक्करं ॥ जो मेरे जीवने अनंत जव Hd पृथिवीप तेज वायु वणस्पती के एकें प्रिय जीव, सुक्ष्महो बादरहो पर्याप्तेहो पर्याप्ते हो क्रोधसें, मानसे, मायासें, लोनसें, पंचेंद्रियपणे, राग सें, द्वेषसें, घातित किएहों, पीमित किएद्दों, तिसका मन वचन काया करके मिठामि डुक्कम दो ॥ " फिर परमेष्ठिमंत्र पढके | “ ॥ जे मए तेणं वनमणेणं बेदिया वा सुहमा वा बायरा वा० शेषं पूर्ववत् ॥ " जो मेरे जीवनें अनंत जव जमते थके बेरिंद्रिय जीव, सुक्ष्म मबादर क्रोधादिकसें घातित पीमित कीए होय तिनका त्रिकोटी मि० " फिर परमेष्ठिमंत्र पढके ।
“ ॥ जे मए अणंतेणं जवनमणेणं तेइंदिया सुह मावा, बायरा वा० शेषं पूर्ववत् ॥ " जो मेनें नं तव नमते थके तेरिंडि जीव सुक्ष्म वा बादर क्रोधादिकसें घातित वा पीमित किए होय सो त्रिकोटी मि० ॥ फिर परमेष्ठिमंत्र पाठपूर्वक कहें