________________
այ
जैनधर्मसिंधु.
रुडक्कय सेवं ॥ १ ॥ ॐ सनमो विप्पोसदि पत्ता णं संति सामिपायाणं, जाँ स्वादा मंतेणं, सवा सिव रिप्रहरणांणं ॥ २ ॥ ॐ संति नमुक्कारो, खेलोसदि माइ लहि पत्ताणं ॥ सौ हूँ। नमोस वो सहि, पत्ताणं च देइ सिरीं ॥ ३ ॥ वाणी तिहु
सामिणि, सिरि देवी जस्करायगणिपिडगा ॥ गढ़ दिसिपाल सुरिंदा, सयावि रकंतु जिन ते ॥ ४ ॥ रकंतु मम रोहिणी, पन्नतीवसिंख ला सया ॥ वऊंकुसि चक्केसरि, नरदत्ता कालि महाकाली ॥ ५ ॥ गोरी तद गंधारी मदजाला माणवी वरुट्टा ॥ तुत्ता मासिया, मदा माण सियाज देवी ॥ ६ ॥ जरका गोमुह मद जका, तिमुदजकेस तुंबरू कुसुमो ॥ मायंगो वि जयाजिय, बंनो मर्ज सुरकुमारो ॥ g ॥ बम्मुद पयाल किन्नर, गरुलो गंधव तदय ज किंदो ॥ कुबेर वरुणो निउडी, गोमेदो पासमा यंगो ॥ ८ ॥ देवी चक्केसरि, जिच्या पुरिया री कालि महाकाली ॥ अच्चु संता जाला, सु तारयासोय सिरिवा ॥ ए ॥ चंडा विजयकुसि प, न्नइति निवाणि अच्च्या धरणी ॥ वइरुट्ट बुत्त