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जैनधर्मसिंधु.
करनेवालोंने नही अंगीकार करा है. तिनोंने तो प्रतिमोहन विधिकोही श्रुतसामयिक कथन करा है. ॥ माला जी कितनेक कौशेय पट्टसूत्रमयी ( रे शमी ) स्वर्ण, पुष्प, मोति, माणिक्य गर्जित, आरो पते हैं. और कितनेक श्वेत पुष्पमयी श्रारोपते हैं. तिसमें तो, अपनी संपत्तिही प्रमाण है.
॥ इति श्रुतसामायिक विधिः ॥
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॥ चप्रथ श्रावक दिन चर्या ॥
दो मुहुर्त शेष रात्रि रहे श्रावक सूता ऊठे, मल मूत्रकी शंका दूर करे, और शुचि होकर पवित्र आसन ऊपर स्थित हुआ यथाविधि परमेष्ठि महा मंत्र का जाप करे पीछे कुल, धर्म, व्रत, श्रद्धाका, विचार करके, और स्तोत्रपाठसंयुक्त चैत्यवंदन कर के, अपने घर में, वा पौषधशालादि में स्थित होकर, प्रतिक्रमणादि करे । पीछे प्रत्युष कालमें अपने घर में स्नान करके, शुचि ढोके, शुचि वस्त्र पहिरके, संसारिक सुख, और मोक्ष देनेवाले, अरिहंतकी पूजा करे । तिसवास्ते जिनाचन विधि, अर्हत्कल्प के कथनानुसारें कहते हैं ॥
॥ प्रर्दत् कल्पोक्त जिनपूजा विधि ॥ श्राद्ध प्राप्तगुरुउपदेश, जिनघरमें, वा बडे मंदि रमें, शिखा बांधी, शुचि वस्त्र पहरि, उत्तरासंग