________________
अष्टमपरिवेद.
ए अन्नं चश्मायोचिश,न हुँति मणुश्रा कयाविजीअलोए दासा पेसा कुनगा, नीथा विगलिंदिया चेव ॥ ६ ॥ किं बहुणाजेशमिणा, विहिणा एवं सुझं अहि जित्ता॥ सुअनणि विहाणेणं, सुके सीले अनिरमिजा॥७॥ नो ते जश् तेणं चित्र, नवेण निवाणमुत्तमं पत्ता ॥ तोणुत्तर गेविजाइएसु सुरं अन्निरमेलं ॥ ७ ॥ उत्तमकुल म्मि उकि, लहसवंगसुंदरापयमा॥ सबकलापतहा, जणमणाणंदणा होऊं ॥ए॥ देविंदोवमरिकी, दयावरा दाणविणयसंपन्ना ॥ निविणकामनोगा, धम्म सयलं अणुठे ॥ १० ॥ सुहसाणानल निदव, घाश्कम्मिधणा महासत्ता ॥ उप्पन्न विमलनाणा, विहुयमला जत्ति सिशंति ॥११॥ __ यह गाथा तीनवार गुरु कहे । इन गाथायोंका नावार्थ उपधानप्रकरणलावार्थ में लिख दिया है. ॥
पीने तिसके स्कंधमें मालाप्रदेप करनी. ॥ पीने श्राकवर्ग बारात्रिक (भारती) गीननृत्यादि बहु त करे. । उपधानवाही श्रावकने तिस दिनमें श्राचा म्लादि तप करना; यदि पौषधशालामें मालारोपण होवे, तदा संघसहित जिनमंदिरमें जावे, चैत्यवं दना करके फिर पौषधागामें श्रायकर मंगलीपूजा दि करे. ॥ इस उपधान विधिको निशीथ, महानि शीथ, सिद्धांतके पढनेवालोंनेश्रुतसामायिकसमान माना है. और निशीथ महानिशथके तिरस्कार