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अष्ठमपरिजेद. ७५५ उणं जाव गहेणं न गहिजामि,जाव बसेणं न बखि जामि, जाव सन्निवाएणं नाजिनविजामि, ताव मे एसासामाश्य परिवत्ती॥" __ ऐसें तीनवार पढावना.। मस्तकोपरि वासक्षेप करना, अदतवासाको अनिमंत्रणा, और संघके हाथ में वासदेप देना, यहां नहीं है परंतु प्रदक्षिणा तीन, करावनी. । इतिषाएमासिक सम्यक्त्वारोपण विधिः ॥
इसीतरें सम्यक्त्वका, और छादश व्रतोंका न। सही दंगकसें तिस अनिलापसें मास, षटू (६) मास वा वर्ष पर्यंत, सम्यक्त्व व्रतोंका उच्चारण करना.। नवरं सम्यक्त्वका सम्यक्त्वदंडसे उच्चार करना. नवरं इतना विशेष है कि, सम्यक्त्वकी अव धिमें 'जावजीवाए' यह पाठ न कहना. किंतु, 'मासं उम्मासं वरिसं' इत्यादि कहना. शेष ब्रतोंमें नी जावजीवाएके स्थानमें 'मासं बम्मासं वरिसं' इत्यादि कहना.॥
अथ प्रतिमोहन विधिः ॥ यावजीवतक नियम स्थिरीकरण प्रतिज्ञा जो है, तिसको प्रतिमा कहते हैं. तिनमें कालादिमें नियमव्यक्बेद नही है.। ते प्रतिमा एकादश (११) गृहस्थोंकी हैं.। तद्यथा ॥ ___“ ॥ दसण १, वय २, सामाश्य ३, पोसह ४, पमिमाय ५, बंन ६, श्रचित्ते, ॥ आरंज , पेस ए, उहिछ, वजाए १०, समणनूए य ११, ॥१॥"