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अष्टमपरिछेद. देशविरतिसामायिक श्रारोपण करना हैं.। तहां नंदि, चैत्यवंदन, कायोत्सर्ग, दमाश्रमणादि, सर्व विधि पूर्ववत् जाणनी. परंतु सर्वत्र सम्य क्त्वसामायिकके स्थानमें देशविर तिसामायिककानाम ग्रहण करना. । सर्वत्र तैसें करके फिर दूसरी नंदि दंगकोच्चारकालमें नमस्कार तीन पागनंतर, हाथमें ग्रहण करे परिग्रह परि माण टिप्पनक(फहरिस्त-नोंध) ऐसे श्रावकको गुरु, देशविरतिसा मायिकदमक उच्चरावे. ॥ सयथा ॥ ___“॥ अहणं जंते, तुह्माणं समीवे, थुलगं, पाणा श्वायं, संकप्पश्रो, बीइंदियाश्जीवनिकायनिग्गहनि यटिरूवं, निरावराहं, पञ्चक्खामि जावजीवाए, 3 विहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, कारणं, न करेमि, न कार वेमि, तस्स नंते पमिकमामि, निंदामि, गरि हामि, अप्पाणं, वोसिरामि, ॥"
यह पाठ तीनवार कहना ॥१॥ इसीतरें सर्व व्रतोंमें तीन २ वार पाठ पढना.॥ ___“ ॥ अहणं नंते, तुह्माणं, समीवे, थूलगं, मुसा वायं, जीहाव्याशनिग्गहहेऊअं, कन्ना, गोनूमि, निकेवावहार, कूम सरकाश, पंचविहं, दरिकन्ना अविसए, अहागहिथ जंगएणं, पञ्चरकामि, जावजीवाए, विहं तिविदेणं, मणेणं वायाए, काएणं ॥५॥"