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जैनधर्मसिंधु. ॥अथ सम्यक्त्वके पांच जूषण कहते हैं. ॥ स्थैर्य-स्थैर्य जिनधर्मकेविषे स्थिरता ।। जिन धर्मकी अनावना।। जिनधर्ममें नक्ति । ३। जिन शासनमें कुशलता ।।। और तीर्थसेवा । ५। ये पांच सम्यकत्व के जुषण हैं. ॥ १५ ॥
अथ सम्यक्त्वके पांच दूषण कहते है. ॥शं का शंका धर्म. है, वा नही ? इत्यादि संदेह ।। आकांक्षाअन्य २ धर्मकी अनिलाषा ।। विचि कित्साधर्मके फलका संदेह । ३। मिथ्यादृष्टिकी प्रशंसा ।४। और मिथ्याष्टियोंका परिचय । ५। ये पांच सम्यक्त्वको पुषित करते हैं. ॥ १६॥ ऐसें पूर्वोक्त उपदेशकरके श्रेणिक, संप्रति, दशार्ण नादि सम्यक्त्वमें दृढ राजायोंके व्याख्यान करे। उस दिनमें श्रावक एकजक्त आचाम्लादि तप करे। साधुयोंको अन्न, वस्त्र, पुस्तक, वसति, यथायोग्य देवे । मंमलीपूजा करनी. । चतुर्विधसंघवात्सल्य करना. । और संघपूजा करनी. ॥ इतिव्रतारोपसंस्कारेसम्यक्त्वसामायिकारोपण विधिः।
देशविरतिसामायिकारोपणविधिः सम्यक्त्व सामायिकारोपणानंतर तत्कालही, तिस की वासनानुसारें, वा मास वर्षादिके अतिक्रम हुए,