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जैनधर्मसिंधुः
सुरूपा सुद्धमणा, पंचसु समिसु संजय तिगुत्तो ॥ जे तम्मि रहे लग्गा, सिग्धं गछंति सिवलो ॥२३॥ थं जलं जलणं, चिंतियमित्तो वि पंच नवकारो ॥
रिमारिचोरराजल, घोरुवसग्गं पणासेइ ॥ २४ ॥ अवय असयं श्रसहस्सं च अकोमी यो ॥ रकंतु मेसरीरं, देवासुरपण मिश्रा सिद्धा ॥ २५ ॥ नमो अरहंताणं, तिलोयपुको संधु जयवं ॥ अमरनररायम दियो, अाइ निदयो सिवं दिसउ ॥ २६ ॥ निहा वि कम्मो, सिवसुद्द यो निरंजणो सिद्धो अमर नरराय महिखो, श्राइ निहणो सिवं दिस। 29 सवे पोसमर, हिश्र हिया पणासमुवयंति ॥ डुगुणी कयधणुस, सोउपि महाधणुसहस्सं ॥ २८ ॥ यतिहुप्पमाणं, सोलसपत्तं जलंतदित्तसरं ॥ अहारवलयं, पंचनमुक्कारचक्क मिणं ॥ २७ ॥ सयलुकोजुवणं, निद्दा विसेससत्तुसंघायं ॥ नासि मित्ततमं विलियमोहं गयतमोहं ॥ ३० ॥ एयरस य मज्जो, सम्मदिठीवि सुद्धचारिती ॥ नाणी पवयणत्तो, गुरुजणसुस्सूसणापरमो ॥ ३१ ॥ जो पंच नमुक्कारं, परमो पुरिसो पराइ जत्तीए ॥ परियत्तेइ पइदिणं, पयओ सुद्धप्प गप्पा ॥ ३२ ॥
वय असया, असदस्सं च अलरकं च ॥ अवय कोडो, सो तश्यनवे लहइ सिद्धिं ॥ ३३ ॥ एसो परमो मंतो, परमरहस्तं परं परं तत्तं ॥