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प्रथमपरिछेद.
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ककारणं ॥ अजिअं संतिं च नाव, अन्न यकरे सरणं पवजादा ॥६॥ मागदिआ॥ अ र रशतिमिर विरदिअ मुवरय जरमरणं, सुर असुर गरुड नुअगवश् पयय पणिवश्रं ॥ अजिअ महमविप्र सुनय नय निनण मन्नय करं, सरण मुवसरिअ नुवि दिविजमदिरं सयय मुवणमे ॥॥ संगययं ॥ तंच जिणुत्तम मुत्तम नित्तम सत्तधरं, अजव मद्दव खंतिविमु त्ति समादि निहिं । संतिअरं पणमामि दमुत्तम तिबयरं,संति मुणी मम संतिसमादिवरं दिसक ॥७॥सोवाणयं॥सावबिपुछपबिवं च वरदवि मबय पसब विबिन्न संथिअं, थिर सरिब वढं मयगल लीलायमान वर गंध दबि पहाण प बियं संथवारिदंदबिदब बाहुं धंतकणगरुअ ग निरुवदय पिंजरं, पवर लकणो वचित्र सो मचारु रूवं, सुश् सुहमणानिराम परम रमणि ज वरदेव इंदि निनाय महुरयरय सुदगिरं ॥णा वेद ॥ अजिअं जिआरिगणं, जिस वनयं नवो दरि॥पणमामि अहं पयर्ड, पावं पसमेन मे जयवं ॥१०॥ रासालु ॥ कुरु