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अष्टमपरिद. ६३ एवं जैसें ऊर्ध्व (खमी) मातृका पूजन करे, तैसेंही बैठी और सुप्त मातृयांका नी पूर्वोक्त मंत्रों सेंही तीनवार पूजन करे;। कितनेक चामुंमा, त्रिपु रा, दोनोंको वर्जके षट्मातृकाही पूजन करते हैं.॥
मातृका पूजन करके ऐसें पढे. ॥ ब्राह्माद्यामातरोप्यष्टौ स्वस्त्रास्त्रबलवाहनाः ॥ षष्ठीसंपूजनात्पूर्वं कल्याणं ददता शिशोः ॥१॥
तदपीले मातस्थापनाकी अग्रनमिमें चंदनलेप स्थापना करके, अंबारूप षष्टीको स्थापन करे. ।
और तिस स्थापनाको दधि, चंदन, अदत, दूर्वा दिकरके पूजे.। तदपी गुरु हस्तमें पुष्प लेके ॥
॥ भी षष्टि। आम्रवनासीने। कदंबवन विहारे। पुत्रघ्ययुते । नरवाहने । श्यामाङ्गि । इह श्राग २ स्वाहा ॥" __ मातृवत् इसकी जी पूजा करणी । तदपीने बाल कमातासहित अविधवा कुलवृक्षा स्त्रीयां मंगलगी. तगानमें तत्पर वाजंत्रोंके वाजते हुए षष्टीरात्रिको जागरणा करे । तदपीछे प्रातःकालमें ॥ "॥ ॐ नगवति माहेश्वरि पुनरागमनाय स्वाहा ॥" - ऐसे प्रत्येक नामपूर्वक गुरु, मातृको और षष्टीको विसर्जन करे । तदपीने गुरु, बालकको पंचपरमेष्टि