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अष्टमपरिद.
इस मंत्रकरके सात वार जलको मंत्र, तिस जल करके कुलवृझा स्त्रीयों बालकको स्नान करावे. । औ र अपनेश्कुलाचारके अनुसार नालछेद करे.तदपीछे गुरु स्वस्थानमें बैगही चंदन, रक्तचंदन, विश्वका ष्टादि दग्ध करके तिनकी नस्म श्वेतसर्षप और लव ण मिश्रित करके पोहलिका बांधे. रदानिमंत्रणमंत्रो यथा ॥
“ ही श्रीअंबे जगंदबे शुन्ने शुनकरे अमुं बा लं जूतेन्यो रद । ग्रहेन्यो रद । पिशाचेच्यो रद । वेतालेन्यो । शाकिनीन्यो रद । गगनदे वीन्यो रद । उष्टेन्यो रद । शत्रुन्यो रद । कार्मणेच्यो रद । दृष्टिदोषेच्यो रद । २ जयं कुरु विजयं कुरु । तुष्टिं कुरु । पुष्टिं कुरु । कुलवृतिं कुरु । श्री ही नगवति श्रीअंबिके नमः॥
इस मंत्रकरके सातवार मंत्रित रदापोलीको काले सूत्रसे बांधके, लोहेका टुकमा, वरुणमूलका टुकडा, रक्तचंदनका टुकमा और कौडी, श्नोसहित रदापोहलिको कुलवृक्षा स्त्रीयोंके पास बालकके हा थ ऊपर बंधावे.॥
सांवत्सर(पंचांग)घटीपात्र, चंदन, रक्तचंदन, समी पमें एकांत गृह,सरसव,लवण कौशेय कृष्णसूत्र,कौमी गीतमंगल, लोहा,रदा,वस्त्र,ददिणावास्ते धन, सूति का, कुलवृक्षा, सर्व जलाशयका जल, जन्मसंस्कारमें