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षष्ठमपरिछेद. ५३३ वली वास कीधो विचारी, पूरे लोकनी श्राश त्रैलो क्य धारी ॥ ३ ॥ धरी हाथमां लाल कब्बान रंगें, ॥ निमी गातमी, रातमी नील अंगें ॥ चडी नीलमे तेजीयें विघ्न वारे, अराध्या थकां पंथ जूलां सधारे ॥ ४ ॥जेणें पाशगोमी तणा पाय पूज्या, शत्रु सर्वदा तेदना सर्व धूज्या ॥ सर्व देव देवी थयां आज बोटां, प्रज्जु पार्श्वनां एक प्राक्रम मोहो टां ॥ ५ ॥ गोमी श्राप जोरे नव खंग गाजे, जेह थी शाकिनी डाकिनी दूर जाजे ॥ पुरे कामना पार्श्व गोडी प्रसिद्धो, हेलां मोहराज जेणे जेर कीधो ॥ ६ ॥ महा पुष्ट मुदत जे नूत मुंडा, प्रजु नाम पामें सर्वत्रास गुमा, जरा जन्मने रोगनां मूल कापे, आरध्यो सदा संपदा सुख थापे ॥ ७॥ उदय रत्न नांखे नमो पार्श्व गोडी, नाखो नाथजी दुःखनी जाल तोडी ॥७॥ . श्रथ चोत्रीस अतिशयनो बंद ॥
॥श्री सुमति दायक, पुरित घायक, ज्ञान अनु जव श्रीवरी ॥ तस सुगुरु केरा, चरण प्रणमुं, जुग म कर जोडी करी ॥ १ ॥ बहु नाव अक्ते, थुणु जिनवर, चोत्रीसें अतिशयें करी ॥ जे सुगुरु मुख थी, सुएयांते कडं, आगम शास्त्रे अनुसरी ॥२॥ तिहां प्रथम अतिशयें, श्री-जिन केरा, रोम नख वाधे नहीं ॥ नीरोग निर्मल गात्र अस्ति द्वितीय