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चतुर्थपरिच्छेद
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नाह, लोक वेवहार न पालि कीधलुं सामि, जाणिऊ केवल ॐ ए बालक जेम, हवा के
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ए ॥ अति जलुं ए मागशे ए ॥ चिंतवि लागशे ए ॥ ३४ ॥ किम ए वीर जिणंद, जगतें जोलो जोल वि ए ॥ पण विल नेह नाह न संपे सूचव्यो ए ॥ साचो ए इह वीतराग, नेह न जेणें लालि ए ॥ इसमे ए गोयम चित्त, राग वेरागें वालि ए ॥ ३५ ॥ श्रावतो ए जो उलट, रहेतो रागें साहि ए ॥ केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहेंजें उमा हि ए ॥ तिहु ए जयजयकार, केवल महिमा सुर करे ए ॥ गणहरु एकरय वखाण, जवियण जव इम निस्तरे ए ॥ ३६ ॥ वस्तुबंद || पढम गणहर पढम गढ़पर वरस पंचास गिहिवासें संवसिय ॥ तीस वरिस संजम विजू सिय॥ सिरिकेवल नाप पुष, बार वरिस तिहुयणनमंसिय ॥ रायगिहि नयरी हिं ववि, बाणवई व रिसाउं ॥ सामी गोयम गुण निलो, होशे शिवपुर वार्ड ॥ ३७ ॥ जाषा ॥ जिम सहकारें कोयल टहुके, जिम कुसुमवनें परिमल महेके, जिम चंदन सुगंधनिधि || जिम गंगाजल लहेरें लड़के, जिम कणयाचल तेजें फलके, तिम गोयम सौभाग्य निधि ॥ ३८ ॥ जिम मान सरोवर निवसे हंसा, जिम सुर वर सिरि कण्यवतंसा, जिम महुयर राजीव वनी ॥ जिम रयणायर रयणें विलसे, जिमांबर