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शष्ठमपरिच्छेद .
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समरम्मि तिरक खग्गा, निग्धाय पविद्ध उद्भूय कबं धे ॥ कुंत विविनिन्न करि कलह, मुक्कसिकार परं मि ॥ १६ ॥ निकिय दप्पुकर रिज, नरिंद निवदा डा जसं धवलं ॥ पावंति पाव पसमिए, पासजि तुह पावे ||१७|| रोग जल जलए विसहर, चोरारि मद गय रण जयाई ॥ पास जिए नाम संकी, तणेण पसमंति सवाई ॥ १७ ॥ एवं महा जयहरं, पास जिनिंदस्स संथवमुयारं ॥ जविय जणा
दरं, कल्ला परंपर निहाणं ॥ १० ॥ राय जय जरकररकस, कुसुमिण दुस्सउण रिकपीमासु ॥ संकासु दोसु पंथे, उवसग्गे तहय रयणीसु ॥ २० ॥ जो पढइ जो छ निसुबइ, ताणंकइलो य माणतुंग स्स || पासो पावं पसमेज, सयल जुवण च्चियां चलणो ॥ २१ ॥ उवसग्गंते कमठा, सुरम्मि जापान जोन सं चलि ॥ सुरनर किन्नर जुवईहिं, संधु जयन पा सजिलो ||२२|| एस्स मनुयारे, श्रहारस अरकेरहिं जो मंतो ॥ जो जाइ सो काय, परम पयचं फुरुं पासं ॥ २३ ॥ पासह समरण जो कुपर, संतुठे हिययेण ॥ अत्तर सय वाहि जय, नासर तस्स दूरेण ॥२४॥ ॥ अथ श्री जक्तामर स्मरणं प्रारंजः ॥
॥ जक्तामर प्रणत मौलिमणि प्रमाणा, मुद्योतकं दलित पापत मोवितानम् ॥ सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुगं युगादा, वालंबनं जवजले पततां जनानाम्