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प्रथमपरिच्छेद.
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नवदाणे तदय निन्दवणे ॥ वंजण अब तडुन ए, विदो नाणमायारो ॥ २ ॥ निस्संकि
निक्कंखिच्प्र, निव्वितिगिता मूढ दिवी ॥ नववृद किरणें, वबल पावणे अट्ठ ॥ ३ ॥ पणिदाणजोगजुत्तो पंचहिं समिईहिं तीहिं गुत्तहिं ॥ एस चारित्तायारो, अव विदो दोइ ना यो ॥ ४ ॥ बारसविदंमि वि तवे, सनिंतरबा दिरे कुसल दिवे || गिलाइ अणाजीवी, ना यो सो तवायारो ॥ ५ ॥ प्रणसमूणोअरि या, वित्ती संखेवणं रसच्चार्ज || कायकिलेसो संली, ण याय बघो तवो दोई ॥ ६ ॥ पाय चित्तं विण, वेयावचं तदेव सद्या ॥ काणं न स्सग्गो विय, नंतर तवो दोई || || अण गूढ़ि बल विरि, पडिक्कमइ जो जुहुत्त मा उत्तो ॥ जुंजइ जहायामं, नायवो वीरिप्राया रो ॥ ८ ॥ इति ॥ २९ ॥
॥३०॥ अथ सुगुरुवांदणां ॥
॥ इवामि खमासमणो वंदिनं, जावणि जाए निसी दिखाए ॥ प्रणुजाद मे मि जग्ग दं निसी हि ॥ अहो कायं काय संफासं, खम