SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ जैनधर्मसिंधु. ॥२॥ अथ देवसिथ पडिक्कमणे गलं ॥ ॥श्वाकारेण संदिसह जगवन् ॥ देवसिप पमिकमणे गजं ॥ श्वं सबस्सवि देवसिअ छ चिंतिम ॥उन्नासिअ उचिहिअ ॥ तस्स मि बामि उक्कडं ॥इति ॥२७॥ ॥श्॥ अथ श्वामि गमि॥ ॥ श्वामि गमि कानस्सग्गं ॥ जो मे देव सिउ अश्वारो कठ॥ का वा माणसि उस्सुत्तो जम्मग्गो अकप्पो ॥ अकरणिजो छ घाउँ ॥ विचिंत्ति अणायारो॥ अणिजिअ वो॥असावगपानग्गो॥नाणेतह दंसणे चरित्ता चरित्ते ॥सुए समाइए ॥तिन्हं गुत्तीणं॥चनन्दं कसायणं ॥ पंचन्दमणुव्वयाणं ॥ तिन्हं गुण बयाणं ॥ चनन्दं सिकावयाणं ॥बारसवि हस्स सावगधम्मस्स ॥ जं खंडिअं जं विरा दिअं॥ तस्स मिलामि उक्कडं ॥इति ॥२॥ ॥श्॥अथ अतिचारनी आठ गाथा॥ ॥ नाणंमि दंसणंमि अ, चरणमि तवंमित दय विरियंमि ॥ आयरणं आयारो, श्अ एसो पंचदा नणि ॥१॥ काले विणए बहुमाणे
SR No.023329
Book TitleJain Dharm Sindhu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Nemichandraji Yati
PublisherMansukhlal Nemichandraji Yati
Publication Year1908
Total Pages858
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy