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जैनधर्मसिंधु रुमा पंखी ॥ जीवधी पारेवो अधिको गएयो, धन्य पिता तुज माय ॥ रुमा राजा धन्य० ॥ ११ ॥ चड ते परिणामे राजवी, सुर प्रगट्यो तिहां आय ॥ रुमा राजा ॥ खमावे बहुविधे करी, लली लली लागे डे पाय ॥ रुमा राजा ॥ धन्य० ॥ १२ ॥ इंजे प्रशंसा ताहारी करी, तेहवो तुं बो राय ॥रु डा राजा ॥ मेघरढ काया साजी करी, सुर पोहोतो निज गय ॥ रुमा राजा ॥ धन्य० ॥ १३ ॥ संयम लीयो मेघरथ रायजी, लोख पूरवनुं श्राय ॥ रुमा राजा ॥ वीशस्थानक विधे सेवियां, तीर्थंकर गोत्र बंधाय ॥ रुडा राजा ॥ धन्य ॥ १४ ॥ इग्यारमे न वें श्रीशांतिजी, पोहोता सर्वार्थसिक ॥रुमा राजा॥ तेत्रीस सागर आउखु, सुख विलसे सुर रिक॥ रुडा राजा ॥ धन्य० ॥ १५ ॥ एक पारेवा दयाथकी, बे पदवी पाम्या नरिंद ॥ रुडा राजा ॥ पांचमा च क्रवर्ति जाणियें, शोलमा शांति जिणंद ॥रुमा राजा ॥ धन्य० ॥ १५ ॥ बारमे नवें श्रीशांतिजी, अचिरा कूखेंअवतार ॥ रुडा राजा ॥ दीदालेश्ने केवल व ख्या, पहोता मुगति मोकार ॥ रुडा राजा ॥ १७ ॥ त्रीजेनवें शिवसुख लह्यो, पाम्या अनंतु ज्ञान ॥ रु मा राजा ॥ तीर्थंकरपदवी सही, लाखवर्ष आयु जाण ॥ रुमा राजा ॥ धन्य० ॥ १७ ॥ दयाथकी नव निधि होवे, दया ये सुखनी खाण ॥ रुडा राजा ॥