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पंचमपरिद.
४१५ ॥ वा ॥ नवी दीसे रे जीहां ज्ञान दिणंद के ॥ ॥ वा ॥३॥ धसमसतां रे जीहां विषयनी जाल के ॥ वा ॥ लीये लूटी रे नगणे पलिवाल के ॥ ॥ वा० ॥ अटवी अनंती रे जीहां विकट उजाम के ॥ वा ॥ चाले नही रे जीहां व्रतनी वाड के ॥ ॥वा ॥४॥ निरखंतारे श्रीजिनमुख नूर के ॥ ॥ वाण ॥ हवे जग्यो रे महासमकेत सूर के ॥वा॥ उखदायी रे दोषि गया दूर के ॥वा॥ वली प्रगव्या रे पुण्यतणा अंकूर के ॥ वा ॥५॥ सुता जागो रे देस विरतिना कंत के ॥ वा० ॥ वली जागो रे सर्व विरति गुणवंत के ॥वा॥ तमे नेटो रे नावें लगवंत के ॥वा॥ पमिकमणां रे करो पुण्यवंत के ॥वा॥६॥ तमे लेजो रे देवगुरुनु नाम के ॥वा॥ वली करजो रे तमे धर्मनां काम के ॥ वा ॥ गुरुजन नारे गावो गुण ग्रामको ॥वा॥ प्रेम धरीने रे करो पूज्य प्रणा म के ॥वा॥॥ तमे करजो रे दशविध पच्चखाण के ॥ वा ॥ तुमे सुणजो रे श्रीसूत्रवखाण के ॥ वा॥ आराधो रे श्री जिननी आण के ॥ वा ॥ जिम पामो रे शिवपुर संगणके ॥ वा ॥ ७॥ सांजलीने रे श्रीमुखनी वाण के ॥ वा० ॥ तमे करजो रे सही सफल विहाण के ॥ वा ॥ वदे वाचक रे उदयर त्न सुजाण के ॥ वा० ॥ एह नणतां रे लहीये कोड कल्याण के ॥ वा० ॥ए॥इति ॥वाहला ॥