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पंचमपरिवेद.
३७१ ॥ अथ सोदागरनी सद्याय॥ ॥लावो लोवोने राज, मोघां मुलनां मोती॥
॥ए देशी॥ ॥ सुण सोदागर बे, दिलकी बात हमेरी॥तें सोदागर दूर विदेशी, सोदा करनकुं श्राया ॥ मोस म आये माल सवाया, रतनपुरीमा गया ॥ सु० ॥ ॥१॥ तिनुं दलालकु हर समजाया, जिनसें बहोत न फाया ॥ पांचं दीवानुं पाऊं जमाया, एककुं चो की बिठाया ॥ सु॥२॥ नफा देख कर माल वि हरणां, चुआ कटे न युं धरनां ॥ दोनुं दगाबाजी फुर करना, दीपकी ज्योतसे फिरनां ॥ सु ॥३॥ और दिन वली मेहेलमें रहनां, बंदरकुं न हलानां ॥ दश सेरसें दोस्तिहि करना, उनसे चित्त मिलानां ॥ ॥ सु० ॥४॥ जनहर तजनां, जिनवर नजनां, स जना जिनकुं दला॥ नवसरहार गले में रखनां, ज खनां लखकी कटाइ ॥ सु० ॥ ५॥ शिरपर मुकुट चमर ढोला, अम घर रंग वधाई ॥ श्रीशुजवीर विजय घर जा, होत सताबी सगा ॥सु०॥शति॥
॥अथ श्री श्रापस्वनावनी सद्याय ॥ ॥श्राप स्वनावमा रे, अबधु सदा मगनमें रहे नां ॥ जगत जीव हे करमाधीना, अचरिज कबुथ न लीना ॥ आ॥१॥ तुम नहीं केरा कोई नहीं तेरा, क्या करे मेरा मेरा ॥ तेरा है सो ते। पासे,