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जैनधर्मसिंधु. ला, सीता जेहनुं नाम ॥ सतीयो मांहे शिरोमणि कहीये, नित्य नित्य होजो प्रणाम ॥ अ० ॥ ॥
॥ अथ वणजारानी सद्याय ॥ __॥ नरजव नयर सोहामणुं ॥ वणजारा रे ॥ पा मीने करजे व्यापार ॥ अहो मोरा नायक रे ॥ स त्तावन संवर तणी ॥ व०॥ पोठी गरजे उदार ॥१॥ ॥ अ०॥शुज परिणाम विचित्रता ॥ व०॥करिया पां बहु मूल ॥ १० ॥ मोद नगर जावा नणी ॥ व०॥ करजे चित्त अनुकूल ॥१०॥१॥ क्रोध दावान ल उलवे ॥व०॥ मान विषम गिरिराज ॥ अ० ॥ उलंघजे हलवें करी ॥ व० ॥ सावधान करे काज ॥ ॥ १० ॥३॥ वंश जाल माया तणी ॥ व० ॥ नवि करजे विशराम ॥ श्र० ॥ खामी मनोरथ जट तणी ॥ २० ॥ पूरणनुं नहीं काम ॥ अ०॥४॥ राग द्वेष दोय चोरटा ॥व०॥ वाटमां करशे हेरान ॥ अ॥ विविध वीर्य उल्हासथी ॥ व०॥ ते हणजे शिरगय ॥०॥५॥इम सवि विघन बिदारीने ॥व०॥ पहोंचजे शिवपुर वास ॥१०॥खय उपशम जे नावना ॥ व०॥ पोगी नस्या गुण राश ॥ १०॥६॥ खायिकनावें ते थशे ॥ व ॥ लाज होशे ते अपार ॥ अ० ॥ उत्तम वणज जे एम करे ॥ व०॥ पद्म नमे वारंवार ॥॥॥ इति ॥वणकारानी सद्याय॥