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३६० जैनधर्मसिंधु. नायक एहि अरज हे ॥ दीजे दरस बमी बेर लश रे॥२॥वीर॥ आशा दासकी पुरन कीजें ॥ चरण शरण लपटाय ररे ॥ ३॥ वीर ॥
॥समेत शिखरथी स्तवन ॥ तुमतो जले विराजोजी ॥ सांवरिया महाराज शिखरपर नले विराजोजी ॥ तेरे घाटे चोकी लागे॥ यात्री जाण न पावे॥ हुकुम कियो श्रीपार्श्वजिनेश्वर ॥ बांह पकमलेजावे ॥१॥ तु ॥ उंचा नीचा पर्वतसो हे॥ तले नीलका वासा॥पेमपेम पर सिंह धमुके ॥ जिहां लिया तुम वासा ॥२॥तु ॥ टुंक टुंक पर धजाविराजे ॥ कालरका ऊणकारा ॥ कालरका ऊण कारासेती ॥गुंजे परवत सारा ॥ तुम ॥३॥ दूरदेस के जात्री आवे ॥ पूजा आन रचावे ॥ अष्ट व्य पूजामे लावे॥मन वंडित फलपावे ॥तु॥४॥ सुरनरमुनि जनवंदन आवे ॥ महा परम सुखपावे ॥ चंद खुसाल चरणको सेवक हरख हरख गुणगावे ॥तुम ॥५॥इति॥
॥विरजिनस्तवन ॥ नाथ कैसें जंबुको मेरे कंपायो ॥ ना ॥ सिका रथ सुत नाम धराया ॥ त्रिसला राणीनो जायो । बप्पन दिशि कुमरी मील आई ॥ सुची कर्म करायो ॥ १॥ ना ॥ इंज महोत्सव जबतिहां प्रग टयो ॥ मेरु शिखरले आयो ॥ इंच सिहांसन पर ले बेहो ॥ मनसंदेह जरायो ॥२॥ ना ॥ अव