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जैनधर्मसिंधु. बबि देखी जाउ वारी । मो.॥ १॥ श्राङ्गी चीज मावनी॥हीरामणि जलकंत, मुख बबि कोटि चन्द्र मांगनयणा अति विकसंत, जगत शोनानी हरनारी, देखी वंदे ने नरनारी । मो. २ समकीत दे दातार तुं, देतुं अदय ज्ञान, पद २ ताहरी बंदना, श्रीपति श्रीनगवान; बालमित्र नक्ति तारी, सकल सुखनी देनारी। मो. ॥३॥
श्रीनेमनाथजी स्तवन । प्यारा नेम मानो, नहीं पाबा आवो, दीन दयाल कृपा करी श्रावो; लियो । संसारनो, लाव्हो, नहीं पाबा श्रावो । टेक ॥ (राजुल)-तुम विन श्रा संसा रमां॥अवर न को आधार; आमी आवी उत्नी रहूं, क्यां जाशो आवार । (नेमनाथ)-सारथी चाल नहीं जनुं रहेवायडे, (राजुल)-परएया विना जोऊ केम जवाय । प्यारा ॥२॥ ___ कर ग्रहीने नले पढी जाजो, मानो मानो जादव पति जासो।नहीं (नेमनाथ)-अष्ट नवांतर हुँ रह्यो, तुज साथे सुण नार; नवमे नव तुमे हवे, आवो थ मारी लार; (राजुल)-मुजथी साथे पण हवे अवाय बे, बाल मित्र मन राजी बहु थाय । प्यारा. ॥२॥
श्रीपार्श्वनाथजी स्तवन, . प्रन्नु पुरो मारी आस.॥ एटेक ॥वसों नयरी वनार सी वासावीसमा जिनश्री पासायहि लंबन धरी