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३३६ जैनधर्मसिंधु
श्री पंच तीर्थ जिन स्तुति. नृपतनयेवर हे मन माके. ए राह. श्री जिनराज सदा सुखकारी,दास नमे शिरन मनकरी तुम शरणांगत श्राव्यांबालक, तारो हे प्रनु मेहर करी,
आदि जिनवरा, अजित प्रनु खरा, शांतिनाथजी, शांति करो त्वरा, पार्श्वनाथने, वीर जीनवरा, बालमित्रने, साह्य करो त्वरा, जिनवरजी, करुं अरजी-श्री जीनराज. १ तुमे दया करी, अम पाप परहरी, शिववधु प्रजू, आपजो खरी, तुम विना बिजो, देव वृथा, जाणी एम अमे, बोडीये मिथ्या. शिवरमणी, मनहरणी-श्री जिनराज नगरमां रही, अर्ज करे सही, तारक तुमविना, बीजो कोई नही, सकल संघना, कष्ट कापजो, मनसुखलालने, मग्न राखजो, सुख करजी फुःख हरजी-श्री जिनराज.३
श्री श्रादिनाथनुं स्तवन. श्रादिजिनेश्वर-अर्ज स्विकारो, कर ग्रही सेवकने प्रजु तारो ॥ आदि जिनेश्वर ॥१॥प्रथम नरेश्वर,प्रथम जिनेश्वर, प्रथम युगल तुमे धर्मनिवास्यो ।