________________
जैनधर्मसिंधु. ॥४॥ अथ सुगुरुने शाता सुखपृबा ॥
॥श्वकारि सुहरा सुददेवसी ॥ सुख तप शरीर निराबाध ॥ सुख संजम यात्रा निर्वहो गेजी ॥ स्वामी शाता जी ॥ नात पाणीनो लान देजो जी॥इति ॥४॥
॥५॥ अथ शरियावदियं॥ .. ॥श्बाकारेण संदिसह जगवन् ॥ शरियाव दियंपमिकमामि ॥श्वं श्बामि पडिक्कमिजं॥१॥ इरियावदियाए विरादणाए ॥२॥ गमणाग मणे ॥३॥ पाणकमणे बीयकमणे दरियकमणे॥ उसा उत्तिंग पणग दग मट्टी मकमा संताणा संकमणे ॥४॥जे मे जीवा विरादिया ॥५॥ एगिदिया बेदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचिं दिया ॥ ६ ॥ अनिदया वत्तिया लेसिया संघा श्या संघटिया परियाविया ॥ किलामिया उद्द विया गणागणं संकामिया जीविया ववरो विया ॥ तस्स मिबामि उक्कम ॥७॥इति ॥५॥
॥६॥ अथ तस्स उत्तरी॥ ॥ तस्स उत्तरीकरणेणं ॥पायबित्तकरणेणं॥ विसोदीकरणेणं ॥ विसनीकरणेणं ॥ पावाणं